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हाईकोर्ट ने खारिज की आरोपी मां की अपील, उम्रकैद की सजा बरकरा

   बिलासपुर. हाईकोर्ट ने महासमुंद के बहुचर्चित दोहरे हत्याकांड में ट्रायल कोर्ट के उम्रकैद के फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपी मां की अपील ख...

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बिलासपुर. हाईकोर्ट ने महासमुंद के बहुचर्चित दोहरे हत्याकांड में ट्रायल कोर्ट के उम्रकैद के फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपी मां की अपील खारिज कर दी है। कोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैसले में कहा है कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, लेकिन ये सभी सबूत आपस में जुड़कर एक ऐसी कड़ी बनाते हैं जो संदेह से परे अपराध साबित करते हैं। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विभू दत्त गुरु की डीबी में हुई।

दरअसल, महासमुंद के लमकेनी निवासी शिक्षक जनकराम साहू ने 20 दिसंबर 2017 को पुलिस को बताया कि उनके किराएदार ईश्वर पांडे की पत्नी और बेटियां घर के अंदर खून से लथपथ पड़ी है। पुलिस मौके पर पहुंची तो दोनों लड़कियां मृत मिली और उनकी मां यमुना गंभीर रूप से घायल थी। घटना स्थल से चाकू, ब्लेड, मोबाइल, सुसाइड नोट बरामद किया गया था। पुलिस ने घायल महिला को अस्पताल में भर्ती कराया था। अपने बयान में उसने बताया कि उसका वैवाहिक जीवन पिछले 6 साल से ठीक नहीं चल रहा था। पति और बेटियां एक- दूसरे से प्यार करते थे। उसे ताना मारते थे, इस वजह से वह डिप्रेशन में चल रही थी, जिसकी वजह से उसने यह कदम उठाया था।

पुलिस की जांच में सामने आया कि आरोप महिला ने डिप्रेशन और पारिवारिक तनाव के चलते वारदात को अंजाम दिया था। उसने डॉक्टरों के सामने अपने बयान में इस बात को स्वीकार भी किया कि उसने ही अपनी बेटियों की हत्या की। इसके बाद आत्महत्या की कोशिश की।

मामले में महासमुंद के प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश की अदालत ने 18 मार्च 2021 को फैसला सुनाया, जिसमें महिला को आईपीसी की धारा 302(2) और धारा 309 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। दसके खिलाफ उसने हाई कोर्ट में अपील की थी। हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी महिला की तरफ से तर्क दिया गया कि वह खुद भी पीड़िता है। सालों से मानसिक रूप से अस्थिर थी। इसके अलावा उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, जबकि राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि घटनास्थल पर बरामद सामान, सुसाइड नोट, मेडिकल रिपोर्ट और महिला के बयान से स्पष्ट है कि वारदात उसने ही की थी।

हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है। सभी साक्ष्य आपस में जुड़कर एक ऐसी श्रृंखला बनाते हैं, जो संदेह से परे अपराध को साबित करते हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट का निर्णय सही है और इसमें हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है।

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