रायपुर। ‘पैर में पोलियो होने के कारण 50 प्रतिशत दिव्यांग हूं। बीकाम की पढ़ाई करने के बाद नौकरी के लिए कंपनियों मे जाने लगा। हर जगह दिव्या...
 रायपुर।
 ‘पैर में पोलियो होने के कारण 50 प्रतिशत दिव्यांग हूं। बीकाम की पढ़ाई 
करने के बाद नौकरी के लिए कंपनियों मे जाने लगा। हर जगह दिव्यांग होने का 
ताना मिला। आपके लिए कोई नौकरी नहीं है… यह कहकर भगा देते थे। अपनी किस्मत 
को कोसते और रोते हुए घर वापस आ जाते थे। एक जगह काम मिला तो वह घर से 15 
किलोमीटर दूर था। एक पैर से साइकिल चलाते हुए वहां तक जाते थे। अब खुद 
दूसरे को नौकरी दे रहा हूं।’ ये कहानी है छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर के 40
 वर्षीय डिकेश टंडन की। उन्होंने बताया कि दिव्यांगता के कारण कोई नौकरी 
नहीं दिया। 2014 में समाज कल्याण विभाग से लोन लेकर खुद का व्यवसाय शुरू 
किया। कूलर, आलमारी बनाने का काम शुरू किया। शुरुआत में परेशानियां आई, 
लेकिन अब अच्छा चल रहा है। दो मिस्त्री और एक मजदूर नियमित काम कर रहे हैं।
 गर्मी के सीजन में मिस्त्री और मजदूरों की संख्या बढ़ जाती है। पैरा 
स्पोर्ट्स एसोसिएशन ऑफ छत्तीसगढ़ में सचिव हैं। इसके माध्यम से दिव्यांग 
खिलाड़ियों की मदद करते हैं। बचपन में दूसरे को खेलते देख मेरा भी मन खेलने
 को करता था, लेकिन दिव्यांग होने कारण बहुत परेशानियां आई। तवा, गोला और 
भाला फेक में राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुका हूं। वहां पर मुझे ब्रांज मेडल भी
 मिला है। इसी तरह, डब्ल्यूआरएस कॉलोनी में रहने वाले 40 वर्षीय संदीप 
कुमार के दोनों पैरों में पोलियों है, इस वजह से 75 प्रतिशत दिव्यांग है। 
संदीप अपनी दिव्यांगता को मात देकर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 
किर्गिस्तान में हुए एशिया आर्म रेसलिंग कप में देश का प्रतिनिधित्व करते 
हुए ब्रांज मेडल जीता। इसके अलावा व्हीलचेयर क्रिकेट भी खेलते हैं। 
व्हीलचेयर रग्बी की इंडिया टीम पर चयन हुआ है। संदीप ने बताया कि पिछले दो 
वर्षों से तवा, गोला और भाला प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहा हूं। राज्य 
स्तर में एक गोल्ड और एक सिल्वर मेडल मिला है। नेशनल लेवल में भी ब्रांच 
मेडल जीत चुका हूं। पढ़ाई के दौरान स्काउट गाइड में था। मुझे 2011 में 
स्काउट गाइड में राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है। समाज में अपनी सहभागिता 
निभाने के उद्देश्य से रक्तदान करता हूं। इसके अलावा नेत्रदान करने का 
संकल्प पत्र भी भर चुका हूं। पिछले 10 वर्षों से आटो चलाकर जीवन यापन कर 
रहा हूं। आटो में पैर से ब्रेक लगता है, लेकिन आटो खरीदकर माेडिफाइड 
करवाया। आटो में पैर की जगह हाथ ब्रेक लगवाया। इसके अलावा समाज का कर्जा 
उतारने रक्तदान करने लगे, अब तक 60 बार कर चुके 38 वर्षीय अनवर अली अब तक 
60 बार रक्तदान कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि 2009 में सड़क दुर्घटना 
हुआ। जिसमें मेरा एक पैर काटना पड़ा। दुर्घटना के दौरान मुझे खून की जरूरत 
पड़ी। एबी नेगेटिव होने के कारण खून मिलने में बहुत दिक्कत आई। मुझे नौ 
यूनिट खून चढ़ा। तभी सोच लिया था कि ये समाज का कर्जा मेरे ऊपर है। इसे 
उतारना है। यही सोचकर रक्तदान करने लगा। हर तीन महीने में स्वेच्छा से जाकर
 नियमित रक्तदान कर रहा हूं। अपनी दिव्यांगता को कमजोरी नहीं मना। इसको 
अपनी ताकत मानकर चल रहा हूं। कृत्रिम पैर के सहारे चल फिर रहा हूं। कृत्रिम
 पैर के सहारे माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक गया। जीवन यापन करने के लिए 
मेडिकल दुकान में नौकरी कर रहा हूं।
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